सनातनी स्वस्तिक प्रमाणीकरण

Sanatani Swastik Certifiactaion Trust® सनातनी स्वास्तिक प्रमाणीकरण ट्रस्ट सनातनियों द्वारा सनातनियों के लिए बनाया गया एक गैर लाभकारी संगठन है जिसका उद्देश्य सनातनी विचारधारा को सहेज कर रखना और उनका प्रचार प्रसार करने हेतु आवश्यक कदम उठाना है जिसमें सनातन विचारधारा एवं सिद्धांत आने वाली पीढ़ी को दे सकें तथा सनातनी विचारधारा के अनुरूप सभी प्रतिष्ठानों के निर्माताओं, प्रसंस्करण कर्ताओं को जागरूक करना तथा सनातन विचारधारा के अनुरूप सामग्रियों का निर्माण करने हेतु प्रेरणा देना एवं प्रमाणीकरण करना |


सनातनी स्वास्तिक सर्टिफिकेट की आवश्यकता न्यास के संज्ञान में आया की गैर सनातनी अपने उत्पादों के निर्माण, विनिर्माण के दौरान मल- मूत्र या थूक व अन्य गलत तरीकों का उपयोग करते हैं जिससे सनातनी विचारधारा खंड-खंड हो जाती है और उपभोग कर्ता को ऐसे उत्पादों का उपयोग करना पड़ जाता है जिसके निर्माण /विनिर्माण में मानव अवशिष्ट, मलमूत्र या पशु अवशिष्ट मलमूत्र का प्रयोग किया गया होता है, जो हृदय विदारक है, सनातनी स्वास्तिक सर्टिफिकेशन ट्रस्ट उन उत्पादों का प्रमाणीकरण करेगा जो सनातन धर्म के अनुरूप निर्माण, विनिर्माण किए गए हो।

सनातनी सात्विक भोजन के लक्षण:

  1. ताजा और प्राकृतिक::सात्विक भोजन ताजा, जैविक और संरक्षक या कृत्रिम पदार्थों से मुक्त होता है। यह अपने प्राकृतिक रूप में जितना हो सके उतना सरल और शुद्ध होता है, जिससे जीवन शक्ति और ऊर्जा मिलती है।
  2. पौधों पर आधारित: : सात्विक आहार में शाकाहारी भोजन प्रमुख होता है, जिसमें फल, सब्जियां, सम्पूर्ण अनाज, दाले, मेवे और बीज शामिल होते हैं। इसके साथ-साथ दूध, घी और दही जैसे दुग्ध उत्पाद भी होते हैं, लेकिन मांस, अंडे और अन्य पशु उत्पादों से बचा जाता है।
  3. हल्का और पचने में आसान::सात्विक भोजन को सरल तरीके से तैयार किया जाता है ताकि उसका पोषण बनाए रखा जा सके। यह पचने में आसान होता है, और इसमें भारी मसाले, तली हुई चीजें या अधिक पकाने से बचा जाता है, ताकि शरीर और मस्तिष्क हल्का और स्पष्ट बना रहे।
  4. शुद्ध और अहिंसक::सात्विक भोजन अहिंसा (अहिंसा) के सिद्धांत के साथ जुड़ा होता है। इसलिए इसमें किसी भी प्रकार के जीवों को हानि पहुँचाने वाले खाद्य पदार्थों, जैसे मांस, अंडे, या विषाणुओं से संक्रमित या हानिकारक बैक्टीरिया वाले भोजन को शामिल नहीं किया जाता। इसमें नशीले पदार्थों जैसे शराब, कैफीन और उत्तेजक चीजों से भी बचा जाता है।
  5. ऊर्जा देने वाला और उत्साहवर्धक::सात्विक आहार मानसिक स्पष्टता, शांति और आध्यात्मिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए माना जाता है। यह उन खाद्य पदार्थों के सेवन को प्रोत्साहित करता है जो स्थिर और संतुलित ऊर्जा प्रदान करते हैं, जिससे भावनात्मक संतुलन और शांतिपूर्ण, स्पष्ट मस्तिष्क का विकास होता है।
सनातनी भारतीय भोजन एक पारंपरिक आहार पद्धति है, जो शुद्धता, संतुलन और सामंजस्य पर आधारित है। आयुर्वेद में निहित यह आहार ताजे, शाकाहारी और आसानी से पचने वाले खाद्य पदार्थों से बना होता है, जो शरीर और मस्तिष्क को पोषण प्रदान करता है। इसमें मौसमी फल, सब्जियाँ, साबुत अनाज, दालें, मेवे, बीज, दुग्ध उत्पाद और हल्के मसाले जैसे हल्दी और जीरा शामिल होते हैं। सनातनी आहार में मांसाहार, अंडे, कैफीन और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों से परहेज किया जाता है। यह आहार प्रेम से तैयार किया जाता है और सचेतन रूप से खाया जाता है, जिससे मानसिक स्पष्टता, शारीरिक स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति को बढ़ावा मिलता है। यह शाकाहार, अहिंसा और पर्यावरण संरक्षण के सिद्धांतों के साथ मेल खाता है, जिससे यह उन लोगों के लिए आदर्श होता है जो शांतिपूर्ण और स्वस्थ जीवन शैली की ओर अग्रसर होना चाहते हैं।


सनातन धर्म, जिसे अक्सर "सनातन धर्म" या "शाश्वत मार्ग" के रूप में संदर्भित किया जाता है, उन आध्यात्मिक, दार्शनिक और नैतिक परंपराओं का मूल नाम है जो हिंदू धर्म की आधारशिला बनाते हैं। यह पारंपरिक अर्थों में एक धर्म नहीं है, बल्कि जीवन जीने का एक समग्र तरीका है, जो विविध विश्वासों, प्रथाओं और मूल्यों को समाहित करता है और जिसका उद्देश्य ब्रह्मांड के साथ सामंजस्य और आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करना है।

सनातन धर्म समावेशी और सार्वभौमिक है, और करुणा, सत्य और प्रकृति के प्रति सम्मान जैसे शाश्वत मूल्यों पर जोर देता है। यह सिखाता है कि जीवन का परम उद्देश्य अपनी दिव्य प्रकृति को पहचानना और ब्रह्मांड के साथ सामंजस्य में जीवन जीना है। इसके सिद्धांत नैतिक जीवन जीने, आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देने और सार्वभौमिक शांति के प्रसार में आज भी प्रासंगिक हैं।.
हरी सब्जियां पोषक तत्वों का भंडार हैं और कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान करती हैं। विटामिन (ए, सी, के और फोलेट), खनिज (लोहा, कैल्शियम और मैग्नीशियम), और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर, ये प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करती हैं, स्वस्थ त्वचा को बढ़ावा देती हैं और सूजन को कम करती हैं। इनमें मौजूद उच्च फाइबर पाचन में सहायता करता है, रक्त शर्करा को नियंत्रित करता है और वजन प्रबंधन में मदद करता है। पालक, केल और ब्रोकोली जैसी हरी सब्जियां कोलेस्ट्रॉल और रक्तचाप को कम करके हृदय स्वास्थ्य में सुधार करती हैं। इनमें मौजूद लोहा और कैल्शियम ऊर्जा को बढ़ाते हैं और हड्डियों को मजबूत बनाते हैं। इसके अलावा, ल्यूटिन जैसे एंटीऑक्सीडेंट दृष्टि की रक्षा करते हैं और दीर्घकालिक बीमारियों को रोकते हैं। हरी सब्जियों का नियमित सेवन संपूर्ण जीवन शक्ति को बढ़ाता है, शरीर को डिटॉक्स करता है और दीर्घकालिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है।.

स्वामी विवेकानंद का जीवन प्रेरणा का एक स्तोत्र है। उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता (तब कलकत्ता) में हुआ था, और उनका असली नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। उनके पिता, विश्वनाथ दत्त, एक लोकप्रिय वकील थे, और उनकी मां, भुवनेश्वरी देवी, एक पवित्र और धार्मिक महिला थीं। विवेकानंद की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई थी, और उन्होंने बचपन से ही आध्यात्म और ज्ञान में गहरी रुचि दिखाई थी।.
शिक्षा और ज्ञान: स्वामी विवेकानंद ने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से अपनी शिक्षा पूरी की। उन्हें सभी विषयों में रुचि थी, लेकिन उनका विशेष मन योग और आध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त करने में था। उन्होंने ब्रह्म समाज के प्रमुख, राजा राममोहन राय और ईश्वर चंद्र विद्यासागर से भी प्रभावित होकर सामाजिक सुधार के विचारों को अपनाया।.
गुरु रामकृष्ण परमहंस से मिलन: स्वामी विवेकानंद के जीवन में सबसे बड़ा मोड़ उस समय आया जब उन्होंने श्री रामकृष्ण परमहंस से मिलकर उनका शिक्षण लेना शुरू किया। रामकृष्ण ने उन्हें धर्म, भक्ति और कर्म के मूल तत्वों से अवगत कराया और उन्हें उनके जीवन का असली लक्ष्य दिखाया।.
प्रमुख योगदान: धर्म महासभा, शिकागो (1893): स्वामी विवेकानंद ने 1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में अपना प्रसिद्ध भाषण दिया, जिसमें उन्होंने सभी धर्मों की एकता और मानवता की बात की। उनका यह भाषण "सिस्टर्स एंड ब्रदर्स ऑफ़ अमेरिका" के संबोधन से शुरू हुआ, जो आज भी उनकी एक प्रमुख और लोकप्रिय उक्ति के रूप में जाना जाता है.
आध्यात्मिकता और सामाजिक सुधार: स्वामी विवेकानंद ने बताया कि सनातन धर्म केवल आध्यात्मिकता तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज की सेवा और वंचितों के उत्थान का भी आह्वान करता है। उनके विचार "दरिद्र नारायण" (गरीबों में भगवान का वास) ने समाज में सेवा के महत्व को स्थापित किया। स्वामी विवेकानंद का जीवन और कार्य सनातन धर्म के संदेश को प्राचीन जड़ों से जोड़ते हुए आधुनिक युग में प्रासंगिक बनाता है। उन्होंने इसे केवल एक धार्मिक परंपरा के रूप में नहीं, बल्कि मानवता के कल्याण का सार्वभौमिक मार्ग बताया।
सनातन धर्म की वैश्विक पहचान: 1893 में शिकागो में विश्व धर्म महासभा में स्वामी विवेकानंद ने सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करते हुए इसकी गहराई, सहिष्णुता और सार्वभौमिकता को उजागर किया। उनके भाषण ने पश्चिमी देशों को सनातन धर्म की महानता से परिचित कराया।